Monday, May 20th, 2024

भारत की आज़ादी से पहले खुली एक छोटी सी दुकान, ब्रांडेड नमकीन Haldiram के रूप में पूरे विश्व को चखा रही अपना स्वाद

नमकीन खाना किसे नहीं पसंद होता है। अगर आप कही किसी भी फंक्शन में जाते है तो सबसे पहले आपको नमकीन ही परोस कर दी जाती है।अपने परिवार दोस्तों या पड़ोसियों के साथ भी बातचीत करते हुए नमकीन का स्वाद लेना काफी अच्छा लगता है। अगर बात करें सबसे बेस्ट नमकीन के बारे में तो लोग हल्दीराम ब्रांड के नमकीन का पहले नाम लेते हैं।

हल्दीराम प्रोडक्ट के नमकीन हर जगह हर घर हर दुकान पर पाए जाते हैं और इसे खाना हर कोई पसंद करता है।  किसी भी पार्टी फंक्शन में हल्दीराम के प्रोडक्ट के नमकीन है नाश्ते के तौर पर दिया जाता है।

आपको यह जानकर हैरानी होगी यह हल्दीराम ब्रांड की शुरुआत आजादी से पहले ही की गई थी वह भी एक छोटी सी दुकान से। आजादी के बाद से यह एक भारत का नंबर एक ब्रांड बन गया। आइए आज हम हल्दीराम ब्रांड के सफलता की कहानी के बारे में जानेंगे।

भुजिया नमकीन से हुई शुरुआत

राजस्थान के बीकानेर के रहने वाले एक बनिया परिवार बहुत ही संघर्ष से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा था। आजादी के लगभग 50 साल पहले अपने परिवार को पालने के लिए वह शख्स बहुत ही मेहनत कर रहा था। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के तनसुखदास के बेटे भीखाराम अग्रवाल की। दरअसल उन्होंने अपने बेटे चांदमाल और अपने नाम को एक साथ मिलाकर भिखाराम चांदमाल नामक एक दुकान खोली।

उस वक्त उन्होंने बीकानेर में भुजिया नमकीन बेचना शुरू किया जो वहां के लोगों को बेहद पसंद आया। इस नमकीन का स्वाद हम लोगों के जुबा पर आ गया। भीखाराम ने अपनी बहन “बीवी बाई” से भुजिया बनाना सिखा था और उनकी बहन ने अपने ससुराल से  भुजिया बनाना सिखा था। जब भी वह अपने मायके आती थी तो अपने साथ भुजिया स्टॉक भर ले आती थी।  जिसे सभी चाव से खाते थे।

छोटे स्तर से हल्दीराम की शुरुआत

भीखाराम भुजिया बना कर अपने दुकान में बेचकर अपने परिवार को चलाते थे। कुछ समय बाद सन 1908 मे भीखाराम के घर उनके पोते का जन्म हुआ। जिनका नाम गंगा बिशन अग्रवाल रखा गया। उनकी मां उन्हें प्यार से हल्दीराम कह कर पुकारते थे। हल्दीराम जब बड़ा हुआ तो शुरुआत से ही अपने घर में नमकीन बनते देखा और उसे बड़े चाव से खाया करता था। हल्दीराम भी अपने दुकानों के कामों में हाथ बटाते थे।

दुकान में रहते -रहते उन्होंने स्वादिष्ट भुजिया बनाना भी सीख लिया। मात्र 11 साल की उम्र में हल्दीराम के शादी चंपा देवी के साथ हो गई। शादी के बाद  हल्दीराम ने अपने दादाजी की भुजिया नमकीन की दुकान पर बैठना शुरू किया ।

एक दिन उनके मन में आया क्यों इस भुजिया के बिजनेस को आगे बढ़ाया जाए। ऐसे में हल्दीराम ने अपने भुजिया के स्वाद को और बेहतरीन करने के लिए कुछ अलग करने का विचार किया। इसके लिए उन्होंने उस में मोठ की मात्रा को बढ़ाया।

परिवार से अलग होकर किया शुरुआत

हल्दीराम के द्वारा चेंज किए भुजिया का स्वाद ग्राहकों को काफी पसंद आया। बाजारों में बिकने वाले भुजिया से काफी अलग उनकी भुजिया का टेस्ट था ।फैमिली प्रॉब्लम के चलते हल्दीराम ने अपने परिवार से अलग होने का फैसला किया। ऐसे में उन्हें परिवारिक व्यापार से कुछ भी नहीं मिला ।अपने परिवार से अलग होने के बाद हल्दीराम बीकानेर में साल 1937 में एक छोटी सी नाश्ते की दुकान की शुरुआत की। जहां पर उन्होंने वहां भी भुजिया बेचना शुरू किया।

इतना ही नहीं अपने भुजिया का स्वाद बढ़ाने के लिए हल्दीराम हमेशा कुछ ना कुछ एक्सपेरिमेंट करते रहते थे।हल्दीराम ने फिर एक नमकीन में बदलाव करते हुए एकदम पतली भुजिया बनाई यह नहीं पतली भुजिया बहुत ही चटपटा और क्रिस्पी था। सबसे अनोखी बात यह है कि इस तरह की भुजिया अभी तक मार्केट में आई नहीं थी ।

इस  टेस्टी भुजिया का स्वाद लोगों को काफी पसंद आया। इस चटपटी और स्वाद से भरपूर भुजिया को खरीदने के लिए हल्दीराम का दुकान के सामने लाइन लग गई। पूरे शहर में इस भुजिया का नाम हो गया और लोग उनकी दुकान को “भुजिया वाला” के नाम से जानने लगे। फिर कुछ समय बाद हल्दीराम ने अपनी दुकान का नाम “हल्दीराम” रख दिया।

हल्दीराम का व्यापार बड़ा

अब मार्केट में हल्दीराम का व्यापार बढ़ने लगा भुजिया के अलावा उसमें कई और प्रकार की अन्य नमकीन भी बनने लगी। इस तरह से उनके हल्दीराम प्रोडक्ट्स की मांग भी बढ़ने लगी। उसके बाद भी हल्दीराम इस भुजिया में बदलाव करते रहते थे। अपने नए बदलाव को उन्होंने नाम दिया है “डूंगर सेव”अपनी इस नई भूजिया का नाम उन्होंने बीकानेर के फेमस महाराजा डूंगर सिंह के नाम पर रखा था।

सन 1940 के समय हल्दीराम अपने व्यापार को पूरे देश में फैलाना चाहते थे। अपने कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों की मदद से हल्दीराम ने कोलकाता में एक दुकान खोली इसके बाद कोलकाता में भी हल्दीराम के एक  ब्रांच आ गई। उसके बाद उनके पोते शिवकुमार और मनोहर ने उनके बिजनेस को संभाला साल 1970 में पहला स्टोर नागपुर में खोला गया पहले उन्होंने अपने कारोबार को नागपुर और फिर दिल्ली तक पहुंचाया।

हल्दीराम प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ी

साल 1983 में दिल्ली में दुसरा स्टोर खोला गया दोनों जगह पर मैन्युफैक्चरिंग  प्लांट स्थापित किए गए। जिसके बाद पूरे देश में हल्दीराम के प्रोडक्ट मशहूर हो गया। इतना ही नहीं हल्दीराम के प्रोडक्ट्स की डिमांड भी विदेशों में भी होने लगी। हल्दीराम प्रोडक्ट्स के नमकीन का स्वाद देश के अलावा विदेशों में भी फैल गया।

साल 2003 में हल्दीराम ने अमरीका में अपने प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट शुरू किया। आज लगभग 80 देशों में हल्दीराम के प्रोडक्ट्स का निर्यात होता है। साल 2015 में अमेरिका ने हल्दीराम के निर्यात पर रोक लगा दी। दरअसल उनका मानना था कि हल्दीराम अपने प्रोडक्ट में कीटनाशक का इस्तेमाल करता है। इसके बावजूद हल्दीराम कंपनी के व्यापार पर कुछ फर्क नहीं पड़ा और आज भी पूरे विश्व में उनके प्रोडक्ट्स बिक रहे हैं।

पूरे देश में 3 भाग मे हल्दीराम कंपनी

हल्दीराम कंपनी अभी पूरे देश में तीन भागों में काम करते हैं।  दक्षिण और पूर्वी भारत का व्यापार कोलकाता स्थित “हल्दीराम भुजियावाला” के पास है। पश्चिमी भारत का व्यापार नागपुर में “हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल” के पास है और उत्तरी भारत का व्यापार दिल्ली में “हल्दीराम स्नैक्स एंड एथेनिक फूड”  के पास है।

जानकारी के अनुसार साल 2013- 14 के बीच हल्दीराम का दिल्ली वाली हल्दीराम कंपनी का रेवेन्यू 2100 करोड़ रुपए और नागपुर वाले कंपनी का साल का रेवेन्यू 1225 करोड़ और नागपुर वाली का रेवेन्यू 210 करोड रुपए था।  साल 2019 में हल्दीराम का सालाना रेवेन्यू 7,130 करोड रुपए था।

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