Tuesday, May 14th, 2024

61 वर्षीय बुजुर्ग का कारनामा, गाँव में आई बाढ़ का पानी देख बनाया पानी पर चलने वाली साइकिल

शहरों में तो अच्छी शिक्षा पाने के लिए स्कूल कॉलेज होते हैं पर गांव में स्कूलों का अभाव होता है। जिससे ग्रामीण इलाके के बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से शहर की तरफ भागते हैं। शिक्षा पाने के लिए लोग नदी तालाबों को भी पार कर के जाने के लिए तैयार रहते हैं। शिक्षा के साथ-साथ रोजगार के लिए भी व्यक्ति गांव से बाहर जाकर मजदूरी करने के लिए मजबूर होता है।

किसी को अगर गांव के बाहर जाने के लिए नदी पार करने होती है तो बहुत ही मुश्किल समय होता है जब बाढ़ के पानी आ जाती हैै। इन्हीं सब परेशानियों को देखने के बाद 61 वर्षीय बुजुर्ग ने पानी पर चलने वाली साइकिल का निर्माण किया। आइए जानते हैं इस बुजुर्ग आदमी ने कैसे इस तरह का साइकिल का आविष्कार किया।

 

जमीन बेचकर किया साइकिल का आविष्कार

बिहार राज्य के मोतिहारी जिले के पूर्वी चंपारण के एक गांव जटवा- जेनेवा से ताल्लुक रखते हैं मोहम्मद सैदुल्लाह। इनके पिता का नाम शेख इदरीश है जो एक किसान थे। सैदुल्लाह का एक ही उद्देश्य है आम लोगों की मदद करना। मोहम्मद सैदुल्लाह सिर्फ दसवीं पास है इनकी उम्र करीब 61 वर्ष है। लोग इन्हें एक आविष्कारक के नाम से जानते हैं पानी को चलने वाले साइकिल का निर्माण कर मोहम्मद सादुल्लाह ने भारत में एक इतिहास रचा। उनके इस निर्माण से बाढ़ प्रवाहित क्षेत्रों के लोगों को बाढ़ से निपटने के लिए खूब मदद मिली लोग उनकी खूब सराहाना कर रहे हैं। इस अनोखे साइकिल के अविष्कारों के लिए उन्होंने अपनी एकड़ जमीन भी बेच डाली।

 बिहार के बाढ़ को देखकर आया साईकिल बनाने का idea

दरअसल लगभग 45 साल पहले साल 1975 में बिहार राज्य मे खूब अधिक वर्षा के कारण बाढ़ आ गई थी जो की तीन हफ्तों तक रही। उसी बाढ़ को देखकर उनके दिमाग में आइडिया आया कि क्यों ना ऐसे साइकिल बनाई जाए जो जमीन पर भी चले और साथ में पानी पर भी चल सके। इसके बाद उन्होंने यह साइकिल बनाई और चेक करनें के लिए गंगा नदी के पहलघाट से महेंद्रुघाट तक साइकिल को चलाई ।

साइकिल को बनाने में छह हजार की लागत आई और लगभग 3 दिन का समय लगा। साइकिल मे रैक्टेंगुलर एयरफ्लोट लगाया जो साइकिल को तेरने में मदद करता है। यह फ्लोट आगे और पीछे के पहियों में लगाया गया है। जब साइकिल को जमीन पर चलाना होता है तो फ्लोट फोल्ड कर दिया जाताा है।

 

सैदुल्लाह पर छाया अविष्कारों का जुनून

वर्तमान में सैदुल्लाह घूमने वाला पंखा का आविष्कार करने में लगे हुए हैं इस पंखे से चारों तरफ बैठे लोगों को बराबर बराबर हवा पहुंचेगी। उन्होंने और भी कई आविष्कार किए हैं। जैसे – पानी पर चलने वाली साइकिल, चाबी से चलने वाला टेबल फैन, चारा काटने की मशीन से चलने वाला मिनी वाटर पंप, मिनी ट्रैक्टर जैसे कई अविष्कार इन्होंने किए। उनके द्वारा किए गए अविष्कार आम आदमी के लिए बहुत ही कारगर साबित होता है। जानकारी के लिए आपको बता दें वर्ष 2005 में उन्हें “नेशनल ग्रासरूट इनोवेशन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था”

अविष्कारों का नामकरण पत्नी के नाम पर किया

1960 में मोहम्मद सैदुल्लाह ने नूरजहां से शादी की थी दोनों के तीन बच्चे हैं दो बेटी और एक बेटा। सैदुल्लाह अपनी बीवी से बहुत प्रेम करते हैं इसलिए वह अपने द्वारा किए गए अविष्कार का नाम अपने पत्नी के नाम पर रखते हैं जैसे-  नूर मिनी वाटर पंप, नूर साइकिल, नूर इलेक्ट्रिक पावर हाउस, नूर वाटर पंप। उनका कहना है कि बीवी का नाम पर आविष्कार का नाम रखने से उनके अंदर प्रेरणा आती है।

 

साइकिल का पंचर भी ठीक करते हैं

अविष्कारों के साथ-साथ से सैदुल्लाह साइकिल का पंचर लगाने का भी काम करते हैं। सैदुल्लाह अपने गांव में 1000 रू किराए पर एक मकान में रहते हैं। पंचर लगाने से जो भी पैसा उन्हें मिलता है वह कुछ नया बनाने में खर्च करते हैं। उनके इस जुनून को उनकी बेटियां भी पहचानती है। वह भी उनका खूब सपोर्ट करती है और साथ में उनके खाने-पीने का भी ख्याल रखती है। सैदुल्लाह ने साइकिल से काफी लंबी लंबी दूरी तय की है कुछ ही समय पहले वह साइकिल से चंपारण से भोपाल तक गए थे ।अब वह साइकिल से हिमालय घूमना चाहते हैं।

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