Wednesday, May 15th, 2024

सुबह लगाता था सब्जी का ठेला रात में करता था पढाई, मेहनत से बना सिविल जज, अब हो रहा गांव नाम रोसन

हमें रोज कोई न कोई ऐसा इंसान दिख जाता होगा जो ठेले पर सब्जी लगता होगा. आपने भी कभी न कभी किसी ठेले से सब्जी जरूर खरीदी होगी. पर कभी अपने सोचा है की जिस सब्जी वाले से आप सब्जी खरीद रहे होंगे वो भविष्य में पढाई करके सिविल जज बन जाए. आज हम बात करेंगे ऐसे ही सक्स के बारे में जिसने कड़ी मेहनत के दम पर वो मुकाम हासिल कर लिया जिसका बहुत से लोग सिर्फ सपना ही देख सकते है.

वो कहते है न की लगातार कोसिस करने वाले की कभी हार नहीं होती. सतना जिले के अमरपाटन के रहने वाले शिवाकांत कुशवाहा ( Shivakant Kushwaha ) को दसवीं बार कोसिस करने बाद में सफलता हाथ लगी है. एग्जाम का रिजल्ट आने के बाद उनके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई है.

मेहनत के दम पर रहे सफल

इस सफता ने मानो उनके परिवार की इज़्ज़त 10 गुना बढ़ा दी और बधाई देने वालो का उनके घर जमावड़ा सुरु हो गया. ओबीसी वर्ग से प्रदेश में शिवाकांत कुशवाहा ने दूसरा स्थान प्राप्त किया है. अपनी उपलब्धि से उन्होंने पूरे प्रदेश में जिले का नाम रोशन किया है. अगर बात करे उनके परिवार और उनके घर की तो वे आज भी कच्चे घर में ही रह रहे है.

पिता करते थे मजदूरी

शिवाकांत कुशवाहा का जन्म सतना जिले के अमरपाटन में एक गरीब परिवार में हुआ था. उनके पिता भी मजदूरी का ही काम करते थे. उनकी माँ घर घर जा कर घरो का काम किया करती थी पर अब वे इस दुनिआ में नहीं रही. शिवाकांत के कुल 3 भाई और 1 बहन में दूसरे नंबर पर थे. उन्हें बचपन से ही पढ़ने लिखने में रूचि थी पर घर की हालत ख़राब होने के कारण उन्हें भी काम करना पड़ता था. इसीलिए वे दिन में सब्जी का ठेला लगाया करते थे रात में परीक्षा की तयारी किया करते थे.

9 बार रहे असफल

12वीं तक की पढ़ाई लिखाई अमरपाटन स्थित शासकीय स्कूल से करने के बाद शिवाकांत कुशवाहा ने रीवा के टीआ एस कॉलेज यानी कि ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय LLB किया. उसके बाद वे कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे. LLB करने के साथ साथ वे सिविल जज की तैयारी करना नहीं छोड़ा. शिवाकांत ने 9 बार सिविल जज की परीक्षा दी और वे हर बार असफल रहे. पर 10वी बार उनकी मेहनत रंग ले और वे ओबीसी वर्ग में द्वितीय स्थान प्राप्त कर के सिविल जज का एग्जाम पास कर लिया.

सब्जी का लगाया ठेला

शिवाकांत कुशवाहा ने बताया “मेरे घर की हालत अच्छी नहीं थी। मेरे माता पिता मजदूरी करते थे और सब्जी बेचा करते थे। सब्जी बेचकर जो पैसे मिलते थे, उससे शाम को घर में राशन लाया करते थे। पिता जी राशन लाते थे, तब घर का चूल्हा जलता था।” उन्होंने ये भी कहा की “मैं प्रतिदिन राशन लेने जाता था। एक दिन राशन लेने गया, तभी मौसम खराब हुआ। राशन लेकर लौटते वक्त मैं पानी में गिर गया। इस दौरान मेरे सिर में चोट लग गई। मैं बेहोश हो गया। इसके बाद घर लोग मुझे लाए। उसी वक्त मुझे लगा कि पढ़ लिखकर कुछ बन जाऊं और घर की गरीबी दूर कर दूं।”

माँ का सपना था की बेता बने जज

शिवाकांत की माँ का साल 2013 में कैंसर से नि’धन हो गया. उनकी माँ ने भी परिवार चलने के लिए कड़ी मेहनत की थी. उन्हों ने अपनी सफलता अपनी माँ को समर्पित किया है. उनकी माँ का सपना था की उनका बेता जज बने.

24 घंटो में से 20 घंटे तक पढाई

एक समय था जब शिवाकांत 24 घंटो में से 20 घंटे तक पढाई किया करते थे. सायद इसी लगन और मेहनत से ही आज वे बहोत अच्छे मुकाम पर आगये है. उनके अंदर पढाई की इतनी लगन थी की वे पढ़ने के लिए दुसरो के घर भी चले जाते थे. उनकी पत्नी जो पैसे से एक टीचर है, उनका पढाई में सहयोग किया करती थी.

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