Thursday, May 9th, 2024

माँ ने मजदूरी कर बेटे को पहले पढ़वाया MBBS फिर बना IAS, पैदा होने से पहले ही पिता की हो गई थी मृत्यु

हमारा पूरा जीवन चुनौतियों से भरा हुआ है बिना चुनौतियों के आज तक कोई भी कामयाब नहीं हो पाया है।जीवन में कुछ करने का दृढ़ संकल्प हो तो परिवार की आर्थिक तंगी भी कामयाबी हासिल करने से नहीं रोक सकती। इसीलिए अच्छे परिणाम के लिए उतना ज्यादा मेहनत भी करना पड़ता है।

इसी तरह चुनौतियों से भरी एक आईएएस ऑफिसर राजेंद्र भारुड(Rajendra Bharud) की कहानी के बारे में आपको बताएंगे। जिन्होंनेे अपनी आर्थिक तंगी को पीछे छोड़ अपनेे लक्ष्य को पाया। उनकी चुनौतियों का यह सफर आजकल के युवाओं को प्रेरणा देने लायक है।

आईएएस ऑफिसर राजेंद्र भारुड़ का परिचय

7 जनवरी 1988 को महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव सकरी तालुका में राजेन्द्र भारुड़ का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम बंधु भारुड और माता का नाम कमलाबाई है। राजेंद्र जब अपने मां के गर्भ में थे तभी उनके के पिता का निधन हो गया था। जिस वजह से उनहोंने अपने पिता का मुँह तक नही देखा है।

राजेंद्र के पिता के मृत्यु के बाद बहुत से लोगो ने उनको अबॉर्शन कराने को कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। राजेन्द्र की पिता की मृत्यु के बाद उनके भाई बहन और माँ के पास रहनें के लिए सर पे छत भी नही थी।जिसके बाद उनकी माँ ने परिवार के पालन-पोषण के लिए देसी शराब बेचना शूरू किया।

 

शराब के पैसे से हुई पढ़ाई

राजेंद्र जब 2-3 साल के थे तब उनके रोने की वजह से शराबियों को दिक्कत होती था। इसलिए उन्हें चुप कराने के लिए वह लोग दो-चार बूंद उनके मुंह में डाल देते थे।  जो लोग खराब लेने के लिए आते थे वह लोग स्नेक्स के बदले राजेंद्र को कुछ पैसे दे दिया करते थे उन्हें पैसे को इकट्ठा कर राजेंद्र किताब खरीदते थे और फिर मन लगाकर पढ़ाई करते थे। उनके मां ने ही उन्हें पढ़ाया और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। जिस वजह से राजेंद्र अब राजेंद्र भारूड़ नही आईएएस राजेंद्र भारुड़ बन चुके हैं।

पूरा परिवार गन्ने के पत्तों की बनी झोपड़ी में रहते थे

राजेंद्र भारुड की पारिवारिक स्थिति शुरुआत से ही अच्छी नहीं थी।जिस वजह से पेट भर कर खाना भी किसी को नसीब नहीं हो पाता था। उनकी दादी  ही घर और तीनों बच्चों का देखभाल करती थी।घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने की वजह से अच्छी स्कूली शिक्षा नहीं मिल पाई थी। सर पर छत नहीं होने कारण पूरा परिवार गन्ने के पत्तों से झोपड़ी बनाकर उसमें रहता था।

उनकी दादी और मां महुआ के फूलों से शराब बनाते थे जो महाराष्ट्र के आदिवासी इलाके में पाई जाती है। परंतु इसे अवैध नहीं माना जाता था क्योंकि और वहाँ पर यह बहुत सामान्य बात थी।शराब बेच कर वह दिन के लगभग ₹100 कमाती थी इन पैसों से जितना जरूरत का सामान होता था वह लेकर जो बचता था उसे शराब बनाने के लिए और बच्चों की पढ़ाई के लिए खर्च करते थी।

10वीं और 12वीं की परीक्षा में टॉप किया

राजेंद्र और उनकी बहन अपने गांव के ही जिला परिषद स्कूल में पढ़ाई करते थे।जबकि उनके भाई एक स्थानीय आदिवासी स्कूल में पढ़ाई करते थे। राजेंद्र छोटे से ही बहुत ज्यादा बुद्धिमान थे। उनकी शिक्षकों ने उनकी मां को यह सूचित किया कि आपका बेटा पढ़ाई में काफी बुद्धिमान है उसे अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए किसी अच्छे शिक्षा संस्थान में भेजना चाहिए।

शिक्षकों के इस बात को सुनने के बाद उनके माँ ने उन्हें गांव से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जवाहर नवोदय विद्यालय में पढ़ने के लिए भेज दिया।उच्च विद्यालय में ग्रामीण क्षेत्रों के होशियार छात्र को मुफ्त में आवास और स्कूली शिक्षा दी जाती है। नवोदय विद्यालय में उन्होंने गणित और विज्ञान मैं सबसे ज्यादा अंक लाया।

10वीं की बोर्ड की परीक्षा में उन्होंने दोनों विषय में टॉप किया और 2 साल बाद बारहवीं बोर्ड परीक्षा में उन्होंने कक्षा में टॉप किया। लगातार टॉप करने के फलस्वरूप उन्हें योग्यता छात्रवृत्ति के द्वारा मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया।

पहले डॉक्टर बने फिर IAS बने

राजेंद्र का बचपन से ही सपना था डॉक्टर बनने का और गरीबों की मदद करने का। दरअसल, वह बचपन से ही गरीब लोगों को देखते थे कि अपनी गरीबी के कारण वह लोग अपना इलाज नहीं करवा पाते थे। यही सब देखकर उन्होंने बचपन में ही ठान लिया कि बड़े होकर डॉक्टर बनेंगे। कुछ समय बाद उन्हें एहसास हुआ कि लोगों की मदद करने के लिए उन्हें अच्छी शिक्षा और बेहतर जीवन का अवसर प्रदान करना होगा। इसलिए उन्होंने सिविल सेवक बनने का भी  सोचा

एमबीबीएस बनने के बाद उन्होंने UPSC परीक्षा की तैयारी की इसके लिए उन्होंने एक ऐसी दिनचर्या बनाई जिसमें एक प्रोग्राम कंप्यूटर की तरह काम होता था।वह सुबह 5:00 बजे उठते फिर प्रैक्टिस और ध्यान करते उसके बाद पढ़ाई शुरू करते, कक्षा में जाते उसके बाद जो समय बचता उसमे घर पर आकर प्रैक्टिस करते थे। फिर उनकी मेहनत  रंग लाई और यूपीएससी की परीक्षा क्लियर की।

जीवन में कभी उदास नहीं होना चाहिए

आईएएस राजेंद्र भारुड़ का कहना था कि “जीवन में आगे बढ़ने और सफलता पाने का एकमात्र यह तरीका है कि जीवन में किसी भी परिस्थिति में उदास नहीं होना चाहिए और ना हीं समस्याओं के बारे में सोचना चाहिए सिर्फ समाधान के बारे में सोचना चाहिए जो आपके इरादों को मजबूत बनाएगा।

उनकी 2 साल की ट्रेनिंग मसूरी में चली उसके बाद 2015 में उन्हें नांदेड़ जिले का असिस्टेंट कलेक्टर नियुक्त किया गया। इसके साथ ही प्रोजेक्ट ऑफिसर का कार्यभार भी दिया गया।साल 2017 में वह सोलापुर में चिफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर के रूप में कार्यरत हुए। इसके बावजूद पूरी तरह से उन्हें कलेक्टर की कुर्सी नहीं मिली थी।

लेकिन फिर भी उन्होंने हर परिस्थिति का डट कर मुकाबला किया और दृढ़ संकल्प के  साथ आगे बढ़ते रहें। फलस्वरूप साल 2018 में इन्हें महाराष्ट्र का नंदुरबार का डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया।

डॉ राजेंद्र भारुड द्वारा लिखा गया किताब

राजेंद्र भारूड़ अपनी एक किताब भी लिख चुके हैं। उस किताब में उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष और अपनी मां के द्वारा बच्चों की परवरिश के लिए दिए गए बलिदान को भी दर्शाया है। यह किताब मराठी भाषा में लिखी गई है जो साल 2014 में प्रकाशित हुई थी।

 

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