Sunday, April 28th, 2024

जेब मैं केवल 30 रूपए लेकर दोस्त के गाड़ी से पहुंचे थे मुंबई, जानिए कैसे हुई देव आनंद की एक्टिंग की शुरुआत!

पुराने हिंदी फिल्मों के सदाबहार अभिनेता देवानंद किसी पहचान के मोहताज नहीं है देवानंद को उनके खास अंदाज के लिए ही जाना जाता है। उनके जिंदगी जीने का अंदाज ने उन्हें कभी बूढ़ा नहीं होने दिया। उनके अंदाज से ही आज भी उनके हजारों लाखों चाहने वाले इस दुनिया में मौजूद है। एक इंटरव्यू के दौरान देव आनंद ने कहा था “मैं हमेशा जल्दबाजी में रहता हूं, क्योंकि वक्त बहुत तेजी से फिसलता है, मैं वक्त के पीछे भाग रहा हूं, मेरे पास बताने को बहुत सी कहानियां है लेकिन वक्त नहीं काश में एक बार फिर देवानंद बन कर जन्म ले पाता और आप लोगों से 25 साल बाद एक युवा अभिनेता के रूप में मिलता।

देवानंद के बॉलीवुड का सफर

जानकारी के लिए आपको बता दें देवानंद ने बॉलीवुड में दो दशक तक राज किया था। अपने अभिनय के साथ-साथ उन्होंने लेखन निर्देशन फिल्म निर्माण में ना केवल अपना प्रदर्शन दिया बल्कि सफलता के शिखर को भी छुआ। इस सफर तक आने के लिए देव को कड़ी मेहनत और निरंतर काम करना पड़ा था। फिल्म “मैगजीन मायापुरी” के 1975 में छपे अंक में देव आनंद के बारे में एक रोमांच और प्रेरक घटना है।।

गीता के कर्म में विश्वास करते थे देव आनंद

जानकारी के लिए आपको बता दें 13000 फुट ऊंची हिमालय की बर्फीली चोटियों पर फिल्माई गई इनकी आकांक्षा पूर्ण फिल्म इश्क इश्क इश्क फ्लाप  हो गई थी। जिसमें 1 करोड रुपए से भी अधिक की लागत लगी थी। इस फिल्म के फ्लॉप होने के बाद एक ज्योतिषी महाराज तंत्र मंत्र का कुछ टोटका लेकर देव साहब के पास पहुंचे।परंतु देव साहब पर और ज्योतिष का कोई प्रभाव नहीं पड़ा उन्होंने उनसे कहा “मैं गीता के कर्म में विश्वास करता हूं, फल की चिंता नहीं करता और ना कभी पीछे मुड़कर देखता हूं, मेरा काम है काम करते रहना जो मैं कर रहा हूं”

मात्र 30 रूपए लेकर आए थे मुंबई

26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में देव आनंद का जन्म हुआ था।उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज में पूरी की थी परंतु पिता के पास पढ़ाने के लिए पैसे नहीं होने के कारण वह आगे नहीं पढ़ पाए। इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में एक्टर बन कर अपना नाम कमाना है।

देव बहुत ही सुंदर और आकर्षक दिखते थे उनकी एक झलक पाने के लिए लोग बेताब रहते थे। एक्टर के सफर की शुरुआत में देव आनंद को बहुत ही कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। जब वह पहली बार 1943 में मुंबई आए थे तब उनके पास केवल 30 थे। उनके पास रहने के लिए भी कोई ठिकाना नहीं था। इसलिए उन्होंने रेलवे स्टेशन के पास में ही एक सस्ते में होटल में कमरा किराए पर लिया उस कमरे में उनके साथ तीन और लोग भी रहते थे। जो देवानंद की तरह है फिल्म इंडस्ट्री में अपना नाम कमाने आए थे।

जीवन यापन के लिए की नौकरी

कुछ दिन होटल के कमरे पर गुजर जाने के बाद देवानंद ने सोचा कि अगर उन्हें मुंबई में अपना गुजारा करना है तो उसके लिए नौकरी करनी पड़ेगी चाहे वह कैसे भी नौकरी क्यों ना हो। जिसके बाद उन्होंने काफी प्रयासों के बाद मुंबई के मिलिट्री सेंसर ऑफिस में लिपिक की नौकरी की। यहां उन्हें सैनिकों की चिट्ठीयो को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था।  उस ऑफिस में उन्हें 165 रूपए मासिक वेतन मिलता था।  जिसमें से 45 रूपए अपने परिवार के खर्च के लिए भेज देते थे।  मिलिट्री सेंसर में उन्होंने लगभग 1 साल तक नौकरी किया।

उसके बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले गए जो उस समय भारतीय जन नाट्य संघ से जुड़े हुए थे। वहां पर उन्होंने देवानंद को अपने साथ शामिल कर लिया और देवानंद को नाटकों में छोटे-मोटे रोल मिलने लगे।जानकारी के लिए आपको बता दें देवानंद के भाई चेतन आनंद और विजय आनंद भी भारतीय सिनेमा में सफल निर्देशक थे उनकी बहन शील कांता कपूर प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक शेखर कपूर की मां है।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार भी मिला

प्रसिद्ध उपन्यासकार आर के नारायण से देवानंद बहुत प्रभावित थे वह उनके उपन्यास “गाइड” पर फिल्म बनाना चाहते थे। जिसके बाद आर के नारायण के स्वीकृति लेकर उन्होंने हॉलीवुड के सहयोग से हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में फिल्म गाइड का निर्माण किया जो देव की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म के बाद देव को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला वर्ष 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देवानंद ने निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा। हालांकि यह फिल्म फ्लॉप रही। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और साल 1917 में उन्होंने फिल्म “हरे रामा हरे कृष्णा” का निर्देशन किया जिसमें वह कामयाब रहे।

 

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