एक रिक्शेवाले ने बहुत संघर्ष के बाद अपने बेटे को IAS बना पाने में सफलता हासिल की। गरीबी इतनी ज्यादा थी की दोनों सूखी रोटी खाकर रातें काटते थे। बेटा 2007 बैच के IAS अफसर है। वे इस समय गोवा में सेक्रेट्री फोर्ट, सेक्रेट्री स्किल डेवलपमेंट और इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जैसे 3 पदों पर तैनात हैं। ये स्टोरी काफी वायरल हुई थी।
इनके एक रिश्तेदार ने बताया कि कभी इनके पास 40 रिक्से थे। लेकिन पत्नी की बीमारी और बेटे की पढ़ाई के लिए लगभग 20 रिक्से बेच दिए। बाद में जब और पैसे की किल्लत हूई तो बाक़ी के सारे रिक्से बेचकर ख़ुद रिक्सा चलाने लगे।
बेटियों की शादी करने के लिए बचे हुए रिक्शे भी बिक गए। सिर्फ एक बचा, जिसे चलाकर मैं घर को चला रहा था। पैसे नहीं होते थे, तो गोविंद सेकंड हैंड बुक्स से पढ़ता था।
गोविंद जायसवाल 2007 बैच के IAS अफसर हैं। वे इस समय गोवा में सेक्रेट्री फोर्ट, सेक्रेट्री स्किल डेवलपमेंट और इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जैसे 3 पदों पर तैनात हैं।
वे हरिश्चंद्र यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन के बाद 2006 में सिविल सर्विस की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए थे। वहां उन्होंने पार्ट-टाइम जॉब्स कर अपनी ट्यूशन्स का खर्च निकाला। उनकी मेहनत रंग लाई और फर्स्ट अटैम्प्ट में ही वे 48वीं रैंक के साथ IAS बन गए।
गोविंद की बड़ी बहन ममता बताती हैं, ”भाई बचपन से ही पढ़ने में तेज था। मां के देहांत के बाद भी उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी। उसके दिल्ली जाने के बाद पिताजी बड़ी मुश्किल से पढ़ाई का खर्च भेज पाते थे। घर की हालत देख भाई ने चाय और एक टाइम का टिफिन भी बंद कर दिया था।
रिक्शा चलाने वाले ससुर पर ऐसा है बहू का रिएक्शन
चंदना बताती हैं, “फक्र है ऐसे ससुर मिले जिन्होंने समाज में एक मिसाल कायम की है। गरीबी-अमीरी की दीवार को गिराया। शुरुआत में चंदना शादी के मूड में नहीं थीं, क्योंकि उसकी ट्रेनिंग चल रही थी। लेकिन नानी के कहने पर उसने हामी भर दी। आज वो अपनी नानी से गोविंद की तारीफें करती नहीं थकतीं।
कभी दोस्त के पिता ने बेइज्जत कर घर से किया था बाहर
गोविंद ने बताया, ”बचपन में एक बार दोस्त के घर खेलने गया था, उसके पिता ने मुझे कमरे में बैठा देख बेइज्जत कर घर से बाहर कर दिया और कहा कि दोबारा घर में घुसने की हिम्मत न करना। उन्होंने ऐसा सिर्फ इसलिए किया, क्योंकि मैं रिक्शाचालक का बेटा था। उस दिन से किसी भी दोस्त के घर जाना बंद कर दिया। उस समय मेरी उम्र 13 साल थी, लेकिन उसी दिन ठान लिया कि मैं IAS ही बनूंगा, क्योंकि यह सबसे ऊंचा पद होता है। हम 5 लोग एक ही रूम में रहते थे। पहनने के लिए कपड़े नहीं थे। बहन को लोग दूसरों के घर बर्तन मांजने की वजह से ताने देते थे। बचपन में दीदी ने मुझे पढ़ाया। दिल्ली जाते समय पिताजी ने गांव की थोड़ी जो जमीन थी, वो बेच दी। इंटरव्यू से पहले बहनों ने बोला था कि अगर सिलेक्शन नहीं हुआ तो परिवार का क्या होगा। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी।
आज मैं जो कुछ भी हूं, पिताजी की वजह से हूं। उन्होंने मुझे कभी अहसास नहीं होने दिया कि मैं रिक्शेवाले का बेटा हूं। बता दें, किराए के एक कमरे में रहने वाला गोविंद का परिवार अब वाराणसी शहर में बने आलीशान मकान में रहता ।
एक बार उनके पैर में चोट लग गया और उचित इलाज़ न करवाने के क्रम में उन्हे टिटनेस हो गया लेकिन कभी नारायण ने इस बात को अपने बेटे गोविन्द को नहीं बताया। दवाई के भी पैसे वह गोदिन्द के पढ़ाई के ख़र्च के लिए भेज देते। ख़ुद दुःख सहे लेकिन बेटे को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी।