Thursday, May 9th, 2024

माँ मजदूरी और पिता करते थे मोची का काम, बेटे ने बिज़नेस सुरु कर 4500 लोगो को दी नौकरी, 500 करोड़ का है टर्नओवर

इस दुनिआ में बहुत से लोग होते है जिनका जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ हो. पर बहुत से लोग ऐसे भी होते है जिन्हे बचपन से ही वो सुख सुविधा नहीं मिल पाती जो अमीर घराने में पैसा हुए बच्चे को मिलती हो. बचपन से ही संघर्ष मानो उनके किस्मत में लिखा हो. इस संघर्ष में जो पास हो जाता है उसकी जिंगदी पूरी तरह से बदकल जाती है.

अशोक खाड़े उन्ही चाँद लोगो में से एक है जिन्हे बचपन से ही संघर्ष का सामना करना पड़ा. पिता मोची का काम करते थे और मां खेतों में दिहाड़ी मज़दूऋ का काम करती थी. गरीब परिवार से होने के बावजूद अशोक ने सिहसा की दम पर अपनी जिंदगी पलट के रख दी. कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा की एक गरीब परिवार का बच्चा एक दिन 500 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार करने वाली कंपनी कड़ी कर देगा और तो और सिख्सा की ताकत दिखते हुए ४५०० लोगो को नौकरी भी देगा.

महाराष्ट्र के सांगली ज़िले के पेड गांव में जन्मे अशोक एक दलित परिवार से है. इनका परस्म्परिक काम मृत जानवरों की खाल उतारना था. इनके परिवार में 6 लोग थे जिनका पालन पोषण करना बहुत मुश्किल होता था. इसीलिए पिता और माँ दोनों काम किया करते थे. कभी ऐसा भी होता था सरे परिवार को भूखा पेट भी सोना पड़ता था.

एक इंटरव्यू में अशोक द इकॉनॉमिक टाइम्स को बताते है “मेरे पिता ने मुंबई में एक मोची के रूप में काम किया.  अभी भी उनके द्वारा लगाए गए पेड़ को देखा जा सकता है और चित्रा टॉकीज के बहार अपना काम करते थे.”

शिक्षा के दम पर खड़ी की कंपनी

अशोक ने 10वी क्लास पास करने बाद अपने भाई और पिताजी की मदद के लिए मुंबई रवाना हो गए। अशोक के पिताजी मुंबई के चित्रा सिनेमा के पास ही मोची का काम करते थे और इनके भाई MAZGOUN DOCKYARD नाम की कंपनी में वेल्डर के रूप में काम करते थे। भाई के साथ उन्होंने उसी कंपनी में एक प्रिशिक्षु के रूप में काम करने लगे और इसके साथ ही पढ़ाई भी करते रहे।

1975 से 1992 तक अशोक ने Mazgaon Dockyard में काम जारी रक्खा था. इसके बाद उन्होंने अपनी कम्पनी शुरू करने का मन बना लिया जिसके लिए कॉन्टेक्ट्स और स्किल्स डेवलप करनी शुरू कर दी. 1983 में उन्हें जर्मनी जाने का मौका मिल गया. यहां जाने के बाद उन्हें एंटरप्रेन्योरशिप का आईडिया दिमाग में आया.

कुछ भी नया सुरु करने के परेशानियां तो आती ही है वही अशोक के साथ भी हुआ, परन्तु उन्होंने हार कभी नहीं मानी और साल 1995 में DAS offshore नाम की कंपनी शुरू कर दिया. उन्होंने यह कंपनी अपने भाई दत्ता और सुरेश के साथ मिलकर किया. DAS का पूरा मतलब है दत्ता, अशोक और सुरेश जो की तीनों भाइयों के नाम है.

आपको बतादे की 1991 के आर्थिक उदारीकरण की वजह से तेल उद्योग में नए मौके मिल रहे थे. छोटे मोठे कॉन्ट्रैक्ट्स पूरा करने के बाद उनका पहला बड़ा प्रोजेक्ट उनकी पहली कम्पनी उनके पिछले एम्प्लायर Mazagon Dock से आया था. उन्होंने अपने साथ काम करने वाले लोगो की मदद से यह प्रोजेक्ट पूरा किया.

गांव के मंदिर में नहीं घुसने को नहीं मिला, बनवा दिया मंदिर

यह सब होने के बाद अशोक ने तेल रिसाव का नव निर्माण करना शुरू कर दिया और इसके साथ ही उनके नए नए कस्टमर्स बनते चले गए. उने बड़े कस्टमर्स में ONGC, Essar, Hyundai जैसी बड़ी कम्पनिया हैं.

एक समय था जब उन्हें और उनके परिवार को उनके ही गाँव के मंदिर में घुसने नहीं दिया गया. समाज की छोटी सोच ने अशोक को एक नए मंदिर का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने गाँव में एक मंदिर भी बना डाला. अब अशोक अपने गांव में एक अस्पताल, एक स्कूल और एक इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने का मन बना लिए है.

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