Wednesday, May 15th, 2024

रिक्शा चलाकर भाई ने पढ़ाया, मां बेचती थीं चूड़ियां, खुद भी किया दुसरो के खेतो में काम, जिम्मेदारी होते हुए भी बनी कलेक्टर

बात बात पर संसाधनों की कमी की दुहाई देकर जो लोग प्रयास भी नहीं करते वे कभी सफल नहीं हो पाते. केवल सपने देखने से कामयाबी नहीं मिलती उसके लिए थोड़ा संघर्ष भी करना पड़ता है. महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली वसीमा शेख (Wasima Sheikh) ने बहुत बड़े सपने देखे थे. उस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने ने जी जान तक लगा दिया. उनके भाई ने भी दिन रात एक करके अपनी बहन को पढ़ाया और आज उन्हें सफलता हासिल करवा दी.

साल 2018 में वसीमा शेख ने महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा (Maharashtra Public Service Commission Exam) की परीक्षा में तीसरा स्थान हासिल किया कर लिया था. वसीमा उन लोगों के लिए एक आदर्श की तरह है, जो गरीबी या अन्य मुश्किलों की वजह से बीच में ही प्रयास करना बंद कर देते है. उनका चयन डिप्टी कलेक्टर के पद पर हुआ है.

गरीब हो या कोई आमिर अगर उसे अपनी जिंदगी में सफल होना है तो उन्हें मेहनत करनी पड़ेगी. पैसे न होने की वजह से भी भी जो लोग परिश्रम करना नहीं छोड़ते वो हमेसा आगे ही निकलते है. हुनर अमीरी नहीं देखती है, अगर किसी गरीब के पास भी हुनर हो तो वो आगे निकल सकता है.

पैसे की दिक्कत पहले से ही वसीमा के घर में थी. उनके पिता की बीमार के बाद उनकी माँ ने चुड़िआ बेचीं और भाई रिक्शा चलाते थे. उनके पास एक ही विकल्प था की वे कड़ी मेहनत करे और उन्होंने काफी संघर्ष किया. तब जाकर उन्हें सफलता मिली.

3000 लोगों की आबादी वाले जोशी सांघवी गाँव से आने वाली वसीम ने अपने पुरे गांव का नाम रोशन कर दिया है. छोटे गांव में अक्षर लड़कीओ को पड़ने का मौका नहीं मिलता है. जैसे ही कोई लड़की शादी योग्य हो जाती है उसके हाथ पिले कर दिए जाते है. बहुत सी लड़किया तो सातवीं कक्षा तक ही पढ़ पाती है. उनपर दबाव बनाया जाता है ताकि वे पढाई छोड़ दे. उनके गाँव में कोई कॉलेज नहीं था. केवल एक मराठी माध्यम स्कूल था. इन हालातो में वसीमा शेख ने तैयारी की और उन्हें महाराष्ट्र में डिप्टी क्लेक्टर (Maharashtra Deputy Collector) या उप-जिलाधिकारी पद के लिए चुना गया है.

वसीमा की और भी २ बहाने है जो उनके ही नक़्शे कदम पर चलते हुए सिविल सर्विस की तैयारी कर रही हैं. उन्होंने आपने बचपन और संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताया की उन्होंने ये मुकाम हासिल करने के लिए कितनी मेहनत करि है. वे काफी समय से प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी में लगी रही जिनसे उनकी राह और आसान हो गई.

उनके परिवार की बात करे तो उनके माता-पिता, 4 बहन और 2 भाई के साथ रहती है. उनके झोपड़ी में बिजली नहीं होने के बावजूद, उन्होंने 2012 में एसएससी बोर्ड में टॉप किया था. अपने 11वीं की पढ़ाई के लिए स्कूल जाने के लिए उन्हें 6 किलोमीटर का लम्बा सफर तैय करना पड़ता था. अपनी बारवी की परीक्षा उन्होंने अपने रिस्तेदारो के घर रह कर पूरी की थी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *